बर्बरीक: (भाग तृतीय)

      बर्बरीक: (भाग तृतीय) 
     घटोत्कच की मृत्यु पर प्रसंन हुए श्रीकृष्ण

       
                 घटोत्कच एक वीर योद्धा था, साथ वह आपनी माता की तरह श्रीकृष्ण का परम भक्त भी था। जब श्रीकृष्ण ने प्रागज्योतिषपुर के राजा भौमासुर और उनके सेनापति मुरार का वध किया तो मुरार की पुत्री का विवाह घटोत्कच के साथ करा दिया। क्योंकि श्रीकृष्ण यह भलीभांति जानते थे कि इन दोनो की प्रवृत्तियां एक समान ही हैं। घटोत्कच का जन्म मनुष्य और राक्षस प्रजाति के मिलने से हुआ था, और अहिलावती को कामाख्या देवी की सिद्धी प्राप्त थी। इस तरह दोनों ही अपार शक्तियों से पूर्ण थे। श्रीकृष्ण ने अहिलावती को प्रतापी पुत्र प्राप्ति का वरदान भी दिया था। जिसके कारण यह विवाह आवश्यक ही नहीं अपितु अनिवार्य़ भी था। 


                महाभारत के युद्ध के समय भीष्म के बाद कर्ण को सेनापति बनाया जाता है। कर्ण के मन में अर्जुन के प्रति पहले से नफरत थी, कर्ण के जीवन का एकमात्र उद्देश्य अर्जुन को परास्त करना था। लेकिन यह अवसर कर्ण को अभी तक प्राप्त नहीं हुआ था। कर्ण के सेनापति बनते ही श्रीकृष्ण और भी चिंतित हो गए। कर्ण का एकमात्र लक्ष्य़ अर्जुन था। । कर्ण ने इंद्र से प्राप्त की हुई एक शक्ति को अपने पास सुरक्षित रखा था, जिसे वह सिर्फ अर्जुन पर इस्तेमाल करना चाहता था। ये बात श्रीकृष्ण को अच्छे से पता थी, अत: श्रीकृष्ण ने युद्ध के लिए घटोत्कच को बुला लिया और कहा कि तुम जितनी क्षमता से य़ुद्ध कर सकते हो, करो। घटोत्कच ने अपनी सभी शक्तियों का प्रयोग करना आरम्भ कर दिया। एक समय ऐसा आया कि दुर्योधन को लगा कि अब उसके प्राण संकट में हैं। दुर्योधन ने कर्ण से कहा कि तुम इंद्र की शक्ति का प्रयोग करके घटोत्कच को मार दो। अपने मित्र को संकट में देखकर कर्ण ने तुरंत ही उस शक्ति का प्रयोग कर दिया। उस शक्ति के लगते ही घटोत्कच की मृत्यु हो गई। यह समाचार जैसे ही पांडवों को मिला सभी दुखी हो गए परन्तु श्रीकृष्ण प्रसंनता की वजह से नाचने लगे। पांडव चकित थे कि घटोत्कच की मृत्यु पर श्रीकृष्ण इतने प्रसंन क्यों हैं? अर्जुन ने अपनी जिज्ञासा व्यक्त की तो श्रीकृष्ण ने पूरा बात बताई कि यदि उस शक्ति का प्रयोग घटोत्कच पर नहीं किया गया होता तो आज अर्जुन युद्ध में मार दिया जाता। और युद्ध जीतने के लिए अर्जुन का जीवित रहना आवश्यक है। 

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